मारवाड़ का इतिहास (महाराजा अभयसिंह , रामसिंह, बख्तसिंह, विजयसिंह और भीमसिंह )

आज हम मारवाड़ का इतिहास में महाराजा अभयसिंह , रामसिंह, बख्तसिंह, विजयसिंह और भीमसिंह के इतिहास की बात करेंगे ।

मारवाड़ का इतिहास
मारवाड़ का इतिहास

Marwar History in Hindi

महाराजा अभयसिंह (1724-1749 ई.)

  • महाराजा अभयसिंह का जन्म 7 नवंबर 1702 को जालौर में हुआ । अपने पिता महाराजा अजीत सिंह की मृत्यु के समय ये दिल्ली में थे । इनका 2 जुलाई 1724 को दिल्ली में राज्याभिषेक किया गया । इसी समय बादशाह मुहम्मदशाह ने इन्हें ‘राजराजेश्वर‘ की उपाधि दी ।
  • इनके शासनकाल में हाकिम गिरधारीदास ने खेजड़ली में पेड़ कटवाने के आदेश दिए । इन पेड़ों को बचाने के लिए 28 अगस्त 1730 को अमृता देवी के नेतृत्व में 363 स्त्री-पुरुष (294 पुरुष ,69 स्त्रियाँ) मारे गए थे ।
  • 19 जून 1749 में को अजमेर में महाराजा अभयसिंह का देहांत हो गया ।

अभयसिंह के निर्माण कार्य :-

  • उन्होंने चौखाँ गाँव का बगीचा व अठपहलू कुआँ बनवाया ।
  • फतहपोल :- यह दरवाजा अहमदाबाद विजय की यादगार में बनाया था । इस विजय से प्राप्त हुआ ‘दल-बादल’ नामक बड़ा शामियाना आज तक बड़े-बड़े दरबारों के समय काम में लाया जाता है और ‘इन्द्रविमान‘ नामक हाथी का रथ सूरसागर नामक स्थान में रखा हुआ है ।

महाराजा अभयसिंह की साहित्य उपलब्धियां :-

  • सूरज प्रकाश :- चारण कवि करणीदान द्वारा रचित पुस्तक में रामचंद्र और पुंजराज तथा उससे चलने वाली 13 शाखाओं के विवरण के अंदर जयचंद से लगाकर अजीतसिंह तक का संक्षिप्त हाल और महाराजा अभयसिंह का सरबुलन्द खाँ के साथ की लडा़ई तक का विस्तृत वर्णन है । यह ग्रंथ डिंगल भाषा में है । इस ग्रंथ ज्ञात होता है कि महाराजा अभयसिंह ने ’14 लाख पसाव’ दिए थे ।
  • विरद श्रृंगार ( बिड़द सिणगार) :- चारण कवि करणीदान द्वारा रचित ग्रंथ बीकानेर के राजवी महाराज कर्नल सर भैरूसिंह ने ‘भैरव विनोद’ नाम से वि.सं. 1658 में प्रकाशित किया ।
  • अभयोदय (संस्कृत) :- भट्ट जगजीवन कृत ।
  • राजरूपक :- रतनू शाखा के चारण वीरभाण द्वारा रचित यह ग्रंथ डिंगल भाषा में है ।
  • कवित श्री माता रा – रसपुंज
  • शालभक्ति प्रकाश , शंकर पचीसी,माधवराव कुंडली – माधोराव द्वारा रचित
  • अमरचंद्रिका – कवि सुरती मिश्र
  • रसचंद,सेवक,प्रयाग ,माईदास,सावंत सिंह, प्रेम चंद, शिवचंद , अनंदराम, गुलाबचंद, भीमचंद, पृथ्वीराय आदि कवियों को महाराजा का आश्रय प्राप्त था ।
  • इन्हीं के समय सांदू शाखा के चारण कवि पृथ्वीराज ने ‘अभय विलास‘ नाम का भाषा काव्य लिखा था ।

महाराजा रामसिंह ( 1749-1751 ई.)

  • महाराजा अभयसिंह के पुत्र रामसिंह का जन्म 28 जुलाई 1730 को हुआ था । अपने पिता महाराजा अभयसिंह का देहांत होने पर वे 23 जुलाई 1749 को जोधपुर की गद्दी पर बैठे ।
  • राज्य प्राप्ति के केवल 2 वर्ष बाद ही उनके चाचा बख्तसिंह ने उन्हें हराकर जोधपुर पर कब्जा किया ।
  • महाराजा रामसिंह की मृत्यु 3 सितंबर 1772 को हो गई ।

महाराजा बख्तसिंह ( 1751-52 ई.)

  • ये महाराजा अजीतसिंह के पुत्र और महाराजा अभयसिंह जी के छोटे भाई थे । इनका जन्म 20 अगस्त 1706 को हुआ ।
  • 22 जून 1751 को इन्होंने अपने भतीजी महाराजा रामसिंह को हराकर जोधपुर नगर पर कब्जा किया और 29 जून 1751 को इन्होंने जोधपुर के गढ़ में प्रवेश किया ।
  • इनका 21 सितंबर 1752 को जयपुर राज्य के सींघोली नामक स्थान पर निधन हो गया ।
  • महाराजा बख्तसिंह के बनवाए नागौर के किले के महल सराहनीय हैं । नागौर के किले का ‘आबहवा महल‘ दिल्ली या आगरा के शाही महलों से बहुत कुछ समानता रखता है ।

महाराजा विजयसिंह ( 1752-1793 ई.)

  • महाराजा विजयसिंह का जन्म 6 नवंबर 1729 को हुआ था । जिस समय उनके पिता बख्तसिंह का देहांत हुआ , विजयसिंह मारोठ में थे । पिता की मृत्यु होने पर वे मारोठ में ही उत्तराधिकारी बने । बाद में 30 जनवरी 1753 को जोधपुर में उनका राजतिलक किया गया ।
  • महाराजा बख्तसिंह के मरने के बाद रामसिंह ने एक बार फिर गया हुआ राज्य हस्तगत करने का प्रयास किया । रामसिंह ने मराठों से मिलकर महाराजा विजयसिंह को घेर लिया । 1756 में विजयसिंह ने मराठों से संधि की । यह संधि जोधपुर के दो सरदारों – सिंघवी फतहचंद तथा देवीसिंह महासिंहोत के प्रयासों से हुई थी । इस संधि के अनुसार जोधपुर, नागौर आदि मारवाड़ का आधा राज्य विजय सिंह को तथा जालौर ,मारोठ तथा सोजत आदि आधा राज्य रामसिंह को मिला ।
  • 1766 ईस्वी में महाराजा विजय सिंह ने ‘रेख बाब‘ नामक कर लगाया ।
  • 1766 ई. महाराजा विजयसिंह ने नाथद्वारा जाकर वैष्णव धर्म स्वीकार किया और अपने राज्य भर में मद्य और मांस की बिक्री बंद करवा दी ।
  • महाराजा विजयसिंह ने 1781 ईस्वी में शाहआलम द्वितीय के समय उसकी आज्ञा से अपनी राजधानी जोधपुर में टकसाल खोली । महाराजा विजयसिंह के समय बनने वाले सिक्के ‘विजयशाही‘ सिक्के कहलाते थे ।

तुंगा का युद्ध ( 1787 ई.)

जयपुर नरेश पृथ्वीसिंह के बालक राजकुमार मानसिंह को गद्दी पर बैठाने के लिए 1787 में तुंगा नामक स्थान पर यह युद्ध हुआ । महाराजा विजयसिंह की सेना व जयपुर नरेश प्रतापसिंह की सेना ने मिलकर तुंगा नामक स्थान पर माधवराव सिंधिया की सेना का सामना किया व उन्हें परास्त किया । जयपुर के महाराजा पृथ्वीसिंह की मृत्यु होने पर प्रताप सिंह वहां का शासक बना था । पृथ्वीसिंह के पुत्र मानसिंह को उनके ननिहाल भेज दिया गया ।

पाटण का युद्ध ( 1790 ई.)

  • 1790 ईस्वी में माधोजी सिंधिया ने अपनी पुरानी हार का बदला लेने के लिए तुकोजी को साथ लेकर मारवाड़ पर चढ़ाई की । मराठों ने लकदा दादा और फ्रेंच जनरल डी बोइने की अध्यक्षता में अपनी सेना विद्रोहियों को दंड देने और राजपूत राजाओं का दमन करने के लिए भेजी ।
  • 20 जून 1790 को तंवरो की पाटण (जयपुर) में विजयसिंह का शत्रुदल से सामना हुआ । इस युद्ध में जयपुर का महाराजा प्रतापसिंह लड़ाई से हट गया जिससे राठौड़ों की पराजय हुई ।

मेड़ता का युद्ध (डंगा का युद्ध) :-

10 सितंबर 1790 को मेड़ता के पास महादजी सिंधिया की सेना एवं जोधपुर महाराजा विजयसिंह की सेना में मेड़ता के पास डंगा नामक स्थान पर युद्ध हुआ , जिसमें जोधपुर राज्य की करारी हार हुई तथा मेड़ता नगर व मेड़ता के दुर्ग पर मराठों का अधिकार हो गया । इस युद्ध में मराठों के सेनापति डी बोइने थे और राठौड़ा सेना अध्यक्ष भंडारी गंगाराम था । इस युद्ध से सांभर की संधि हुई ।

  • 7 जुलाई 1793 को जोधपुर में महाराजा विजयसिंह का निधन हो गया ।
  • बाहरठ विशनसिंह नामक कवि ने महाराजा विजय सिंह के नाम पर ‘विजय विलास‘ नामक काव्य ग्रंथ की रचना की थी ।
  • 1760 ई. में इन्होंने जोधपुर शहर में गंगश्यामजी का विशाल मंदिर बनवाया था । इन्होंने बालकृष्ण का मंदिर भी बनवाया था ।
  • श्रृंगार चौकी , जिस पर नवीन महाराजाओं का राजतिलक होता है, महाराजा विजय सिंह ने बनवाई थी ।

गुलाबराय पासवान :- महाराजा विजयसिंह के गुलाबराय नाम की जाट जाति की पासवान थी ,जिसकी उस पर उसकी विशेष कृपा थी । कवि राजा श्यामलदास के शब्दों में विजयसिंह को ‘जहाँगीर का नमूना‘ कहा है और पासवान को ‘नूरजहाँ का नमूना‘ कहा है । 16 अप्रैल 1792 को सरदारों ने गुलाबराय पासवान की हत्या कर दी ।

  • गुलाबराय ने गुलाब सागर तालाब , जालौर के गढ़ के महल और कुंज बिहारी का मंदिर बनवाया था । इसके अलावा मायला बाग व उसका झालरा भी बनवाया ।

महाराजा भीमसिंह ( 1793-1803 ई.)

  • महाराजा भीमसिंह का जन्म 19 जुलाई 1766 को हुआ था । महाराजा विजयसिंह की मृत्यु के समय वह जैसलमेर में थे । 20 जुलाई 1793 को महाराजा विजयसिंह के पौत्र भीमसिंह जोधपुर की गद्दी पर बैठे ।
  • उनकी मृत्यु 19 अक्टूबर 1803 को हुई ।
  • भीम प्रबंध :- 20 सर्गो के इस संस्कृत महाकाव्य की रचना महाराणा भीमसिंह की आज्ञा से भट्ट हरिवंश ने की थी ।
  • भीमसिंह के समय में कवि रामकर्ण ने ‘अलंकार समुच्चय‘ नामक पुस्तक की रचना की थी ।
  • मंडोर का महाराजा अजीतसिंह का देवल जो अधूरा रह गया था, महाराजा भीमसिंह के समय पूर्ण हुआ था ।

जोधपुर राज्य (Jodhpur History in Hindi) के राठौड़ वंश का इतिहास में अगली पोस्ट में जोधपुर के राठौड़ शासक महाराजा मानसिंह के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

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