राजपूत राजवंशों की उत्पत्ति में आज हम गुहिल वंश के रावल समरसिंह तथा रतनसिंह का इतिहास की बात करेंगे ।

रावल समरसिंह ( 1273-1302 ई.)
- तेजसिंह के बाद उसका पुत्र समर सिंह मेवाड़ का स्वामी बना ।
- विद्युल्लता चितौड़ की वीर कन्या थी , चित्तौड़ के सरदार समर सिंह से प्रेम करती थी । अलाउद्दीन के चित्तौड़ पर आक्रमण करने पर समर सिंह ने विश्वासघात कर अलाउद्दीन का साथ दिया । विद्युल्लता को सच्चाई का पता लगने पर उसने कटार निकालकर अपनी छाती में घोंप ली और शहीद हो गई ।
- कुंभलगढ़ प्रशस्ति में उसे शत्रुओं की शक्ति का अपहर्ता एवं आबू अभिलेख में तुर्कों से गुजरात का उद्धारक बताया गया है ।
- जिनप्रभु सूरि के ग्रंथ तीर्थकल्प में 1299 ईसवी के लगभग अलाउद्दीन खिलजी के छोटे भाई उलूगखाँ के गुजरात आक्रमण का उल्लेख है ।
- समर सिंह के काल के 8 शिलालेख (चित्तौड़ के पांच लेख 1278 से 1299 ई.,चीरवा अभिलेख 1273 ईस्वी, आबू का लेख 1285 ई.,दरीबा का लेख 1299 ई ) प्राप्त हुए हैं ।
- चीरवा के शिलालेख में समर सिंह को परम पराक्रमी एवं शत्रुओं का संहार करने वाला बताया है ।
- अंचलगढ़ की पट्टावली से ज्ञात होता है कि इसने राज्य में जीव हिंसा पर रोक लगा दी थी ।
- इसका शासनकाल विद्योन्नति एवं साहित्य के विकास के लिए भी जाना जाता है ।
- इसके समय प्रसिद्ध विद्वान, लेखक एवं प्रशस्तिकार रत्नप्रभु सूरि, भावशंकर, पार्श्वचन्द्र, शुभचंद्र, वेद शर्मा आदि तथा प्रसिद्ध शिल्पी एवं कलाकार शिल्पी कर्मसिंह, कल्हण, पद्म सिंह एवं केलसिंह आदि थे ।
रावल रतनसिंह ( 1302-1303 ई.)
- समरसिंह के दो पुत्र – रत्नसिंह व कुंभकर्ण हुए । कुंभकर्ण नेपाल चला गया व वहाँ गुहिल राजवंश के शासन की नींव डाली । रतन सिंह मेवाड़ का राजा बना ।
- 1540 ई. में मलिक मोहम्मद जायसी के ग्रंथ ‘पद्मावत’ के अनुसार रतन सिंह की रानी पद्मिनी सिंहल देश के राजा गंधर्वसेन की पुत्री थी , जो अत्यंतम सुंदर महिला थी ।
- रावल रतन सिंह के शासन काल की प्रमुख घटना चित्तौड़ का प्रथम शाका थी ।
- दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर 28 जनवरी 1303 ईसवी को आक्रमण किया व 8 महीने घेरे के बाद दुर्ग की रक्षा का अन्य कोई उपाय न देख रावल रतन सिंह व अन्य राजपूत वीर दुर्ग के फाटक खोल दुश्मन पर टूट पड़े एवं युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ।
- 26 अगस्त 1303 ई. को चित्तौड़ का किला अलाउद्दीन के अधीन हो गया ।
- मलिक मोहम्मद जायसी के ‘पद्मावत’ के अनुसार यह युद्ध रावल रतन सिंह की रूपवती महारानी पद्मिनी को प्राप्त करने के लिए हुआ ।
- इस युद्ध में हजारों वीर योद्धाओं के साथ रावल रतन सिंह मारे गए व रानी पद्मिनी ने दुर्ग की वीरांगनाओं के साथ जोहर किया ।
- इस युद्ध में ‘गौरा व बादल’ दो वीर योद्धाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई व वीरगति को प्राप्त हुए ।
- अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का किला अपने पुत्र खिज्र खाँ को सौंपकर उसका नाम खिज्राबाद रख दिया ।
- चित्तौड़ के इस प्रथम शाके में प्रसिद्ध इतिहासकार व कवि अमीर खुसरो अलाउद्दीन के साथ था । यह राजस्थान का दूसरा शाका था । इस युद्ध के बारे में अमीर खुसरो ने अपने ग्रंथ ‘खजाइन-उल-फुतुह’ में वर्णन किया ।
- रतन सिंह की मृत्यु के बाद रावल शाखा समाप्त हो गई यानि गुहिलों की रावल शाखा का अंतिम शासक रावल रतन सिंह था ।
- खिज्र खाँ 1313-1315 ईसवी के बीच चितौड़ में शासन करता रहा । उसके बाद वह दिल्ली चला गया ।
- इसके बाद चित्तौड़ का शासन कान्हड़दे ने रिश्तेदार मालदेव सोनगरा को सौंप दिया गया ।
- 1326 ई. में सिसोदिया शाखा के राणा अरिसिंह के पुत्र राणा हम्मीर ने चित्तौड़ पर वहां के राजा जैसा (मालदेव सोनगरा का पुत्र) को हराकर अपना अधिकार कर लिया और सिसोदिया वंश की नींव डाली ।