आज हम बीकानेर राज्य के राठौड़ वंश के इतिहास (Bikaner History in Hindi) की बात करेंगे ।

बीकानेर राज्य का इतिहास (History of Bikaner in Hindi)
- बीकानेर राज्य का पुराना नाम ‘जांगलदेश’ था । उसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे । बीकानेर के राजा जांगल देश के स्वामी होने के कारण ‘जंगलधर बादशाह‘ कहलाते थे । बीकानेर के राज्य चिन्ह में ‘जय जंगलधर बादशाह’ लिखा जाता था ।
- राठौड़ों के अधिकार से पूर्व बीकानेर का दक्षिण हिस्सा ‘जांगलू‘ नाम से प्रसिद्ध था । यह सांखला परमारों के अधीन था ।
- प्राचीन काल में जांगल देश की सीमा के अंतर्गत सारा बीकानेर राज्य और उसके दक्षिण के जोधपुर राज्य का बहुत कुछ अंश था ।
- मध्यकाल में उस देश की राजधानी अहिच्छत्रपुर थी, जिसको इस समय नागौर कहते हैं ।
- राठौड़ों का बीकानेर राज्य का अधिकार होने से पूर्व यहाँ जोहियों,चौहानों, सांखलों (परमार) , भाटियों व जाटों का अधिकार रहा ।
जोहिये :- यह बहुत प्राचीन जाति हैं । जोहिये के लिए संस्कृत लेखों में ‘योधेय’ शब्द मिलता है । इनका मूल निवास पंजाब में था । इन्हीं के नाम से सतलज नदी के दोनों तटों पर भावलपुर राज्य के निकट का प्रदेश ‘जोहियावार’ कहलाता था । बीकानेर राज्य का उत्तरी भाग पहले जोहियों के अधिकार में था । राव बीका के आने पर जोहियों ने उसका आधिपत्य स्वीकार किया ।
चौहान :- चौहानों की पुरानी राजधानी नागौर (अहिच्छत्रपुर) थी । वहाँ से वे लोग साँभर की तरफ बढ़े और वहाँ अपनी राजधानी स्थापित की । साँभर का समीपवर्ती प्रदेश ‘सपादलक्ष‘ कहलाता था ।
- छापर और द्रोणपुर के आसपास का प्रदेश ‘मोहिलवाटी‘ कहलाता था । मोहिल,चौहानों की ही एक शाखा है । बीकानेर राज्य का दक्षिण पूर्वी भाग तथा मारवाड़ का लाड़नूँ परगना मोहिलों के अधिकार में रहा । चाहमान के वंश में सजन का पुत्र मोहिल हुआ । मोहिल ने यहाँ के प्राचीन वागडिये राजपूतों को परास्त कर उनका अधिकृत प्रदेश छीन लिया था ।
- राव जोधा ने उन पर आक्रमण कर उनका सारा प्रदेश अपने अधिकार में ले लिया । इस पर मुसलमान सेनाध्यक्ष सांरग खाँ की सहायता से मोहिलों ने अपने इलाके को पुन: राठौड़ों से छीन लिया , तब बीकानेर के राव बीका ने मोहिलों पर चढा़ई कर उन्हें परास्त किया ।
- मोहिलवाटी को विजय कर वह प्रदेश अपने भाई बीदा को दे दिया । राव बीदा ने बीदासर कस्बे के नींव डाली । राव बीदा के वंशज बीकानेर राज्य के अधीन रहे ।
सांखला (परमार) :- सांखलों के लिए संस्कृत में ‘शंखुकुल’ शब्द मिलता है । उनकी एक शाखा का रूंण (जोधपुर राज्य ) में निवास था । महीपाल सांखला को पुत्र रायसी बीकानेर राज्य के जांगलू प्रदेश में गया और वहाँ रहने लगा । देशनोक के पास रासीसर गाँव रायसी सांखला द्वारा बसाया हुआ ही माना जाता है ।
- रायसी सांखला के बाद उसका पुत्र अणखसी जांगलू का स्वामी हुआ । बीकानेर राज्य का अणखीसर गांव अणखसी ने बसाया । अणखसी के बाद खींवसी और उसके बाद कुमरसी हुआ । कुमरसी के बाद राजसी, मूंजा, ऊदा, पुण्यपाल व माणकपाल हुए ।
- माणकपाल का पुत्र नापा सांखला था । 1465 ई. में राव बीका ने जांगलू की तरफ जाकर उस प्रदेश को जीता । नापा सांखला ने राव बीका की अधीनता स्वीकार कर ली । नापा सांखला के वंशज भी वर्षों तक बीकानेर राज्य के विश्वासपात्र सेवक बने रहे ।
भाटी :- बीकानेर के पश्चिमोत्तर का सारा प्रदेश, जो जैसलमेर राज्य की सीमा से पंजाब की सीमा तक है , बीकानेर राज्य की स्थापना से पूर्व भाटीयों के अधिकार में था । उनके दो भाग थे –
(१) पूगल प्रदेश के भाटी राजपूत
(२) भटनेर के भट्टी मुसलमान
- भाटी राव शेखा पूगल का स्वामी था , जिसे मुसलमानों ने पकड़ लिया था । राव बीका ने शेखा की स्त्री की प्रार्थना पर शेखा को कैद से छुड़वा दिया था । तब राव शेखा ठकुरानी ने अपनी पुत्री रंगकुंवरी का विवाह बीका के साथ कर दिया । राव शेखा ने बीका की अधीनता स्वीकार की और पूगल बीकानेर राज्य के अंतर्गत हो गया ।
- इसी प्रकार राव बीका ने उत्तर के भाट्टीयों पर भी अपना अधिकार किया , परंतु इस प्रदेश पर बीकानेर के नरेशों का लगातार अधिकार नहीं रहा । अत: में महाराजा सूरतसिंह ने भाट्टियों का दमन कर सारा इलाका और भटनेर दुर्ग (हनुमानगढ़) अपने राज्य में मिला लिया ।
जाट :- बीकानेर राज्य के आसपास का बहुत सा इलाका जाटों के अधिकार में था । यहां कई जातियां थी और उनका इलाका कई भागों में बंटा हुआ था । गोदारा जाट पांडू और सारण जाट पूला के पारस्परिक झगड़े में राव बीका ने पांडू का पक्ष लिया था । अत: में सब जाटों ने राव बीका की अधीनता स्वीकार की । पांडू गोदारा को अधिकार दिया गया कि बीकानेर के राजा का राजतिलक उन्हीं के वंशजों के हाथ से होगा ।
बीकानेर का राठौड़ वंश ( Bikaner ka rathore vansh in Hindi)
राव बीका (1465-1504 ई.)
- जोधपुर राज्य के स्वामी राव जोधा की सांखली रानी नौरंगदे से राव बीका का जन्म 5 अगस्त 1438 को हुआ ।
- राव बीका ने नई राज्य की प्राप्ति हेतु 30 सितंबर 1465 को जोधपुर से प्रस्थान किया । मंडोवर होता हुआ राव बीका देशनोक पहुंचा , जहाँ उसने करणी माता जी के दर्शन किए ।
- उसने जांगलू प्रदेश को 1465 ई. में जीता एवं प्रदेश में राठौड़ वंश के शासन की स्थापना की ।
- 1472 में कोडमदेसर में अपने आप को राजा घोषित किया ।
- राव बीका ने कोडमदेसर में भैरव मंदिर का निर्माण करवाया था ।
- राव बीका ने 1485 में रातीघाटी में बीकानेर गढ़ की नींव रखी जो 1488 में बनकर तैयार हुआ । 12 अप्रैल 1488 को उस गढ़ के आसपास राव बीका ने अपने नाम पर बीकानेर नगर (नेरा जाट के सहयोग से) बसाया ।
- बीठू सूजा के ‘राव जैतसी रो छंद’ के अनुसार राव बीका ने देरावर , मुम्मणवाहन, सिरसा, भटिंडा, भटनेर, नागड़, नरहड़ आदि स्थानों पर आक्रमण कर उन्हें अधिकृत किया तथा नागौर पर चढ़ाई कर उसे दो बार जीता ।
- राव बीका का अंतिम आक्रमण रेवाड़ी पर हुआ । राव बीका ने खंडेला के स्वामी रिडमल व दिल्ली सल्तनत के सेनापति नवाब हिंदाल को तलवार के घाट उतार विजय प्राप्त की ।
- राव बीका ने मेवाड़ के पितृहन्ता उदा को शरण दी थी । उदा को मेवाड़ से राणा रायमल के द्वारा निकाला गया था ।
- बीका के स्मारक शिलालेख के अनुसार राव बीका की 17 जून 1504 को मृत्यु हो गई ।
- राव बीका माता करणी जी का अनन्य उपासक था और राज्य की वृद्धि को उसी की कृपा मानता था । करणी माता बीकानेर के राठौड़ राजवंश की कुलदेवी हैं । राव बीका ने करणी माता का मंदिर देशनोक में बनाया ।
- राव बीका के देहांत होने के बाद उनका जेष्ठ पुत्र नरा बीकानेर का स्वामी हुआ, परंतु केवल कुछ माह राज्य करने के बाद 13 जनवरी 1305 को उनका देहांत हो गया ।
राव लूणकरण (1505-1526 ई.)
- राम लूणकरण का जन्म 12 जनवरी, 1470 को हुआ । उनकी माता बीका की रानी रंगकुंवरी थी । नरा के नि:संतान मरने पर उसका छोटा भाई लूणकरण 23 जनवरी 1505 को बीकानेर की गद्दी पर बैठा ।
- सर्वप्रथम लूणकरण ने 1509 ई. में दद्रेवा के स्वामी मानसिंह पर आक्रमण कर इस परगने को अपने हाथ में ले लिया ।
- नागौर के स्वामी मुहम्मद खाँ ने बीकानेर पर 1513 ईसवी में आक्रमण किया, परंतु वह हार गया ।
- राव लूणकरण ने जैसलमेर के रावल जैतसी (जैतसिंह द्वितीय) को भी हराया व उसे बंदी बना लिया । उस समय बाद रावल जैतसी ने संधि की और अपनी पुत्री का विवाह राव लूणकरण के पुत्र से किया ।
- चित्तौड़ के राणा रायमल की पुत्री से राव लूणकरण का विवाह हुआ ।
- नारनौल के नवाब शेख अबीमीरा से युद्ध करते हुए 31 मार्च 1526 को धासी(ढोसी) नामक गांव में वीरगति को प्राप्त हुए ।
- राव लूणकरण ने बीकानेर में लक्ष्मी नारायण जी का मंदिर बनवाया ।
- राव लूणकरण ने लूणकरणसर बसाकर लूणकरणसर झील का निर्माण करवाया ।
- ‘कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकं काव्यम्’ में राव लूणकरण को उनकी दानशीलता की तुलना कर्ण से की गई है ।
- बीठू सूजा रचित ‘राव जैतसी रो छंद’ में उसे ‘कलयुग का कर्ण’ कहा गया है ।