Chol Vansh History in Hindi ( चोल वंश का इतिहास)
दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश
(1) पल्लव वंश
(2) राष्ट्रकूट वंश
(3) चालुक्य वंश (कल्याणी )
(4) चालुक्य वंश (वातापी )
(5) चालुक्य वंश (बेंगी )
(6) चोल वंश
(7) यादव वंश
(8) होयसल वंश
(9) कदम्ब वंश
(10) गंग वंश
(11) काकतीय वंश
Chola dynasty kings In Hindi

(1) पल्लव वंश
काँची के पल्लव वंश के विषय में प्रारंभिक जानकारी हरिषेण की ‘प्रयाग प्रशस्ति’ एवं ह्वेनसांग के यात्रा विवरण से मिलती है ।
पल्लव वंश का संस्थापक सिंहविष्णु(575-600 ई.) था । इसकी राजधानी काँची (तमिलनाडू) थी । वह वैष्णव धर्म का अनुयायी था ।
किरातार्जुनीयम के लेखक भारवि सिंहविष्णु के दरबार में रहते थे ।
पल्लव वंश के प्रमुख शासक महेंद्र वर्मन प्रथम , नरसिंह वर्मन प्रथम , महेंद्र वर्मन द्वितीय , परमेश्वर वर्मन प्रथम , नरसिंह वर्मन द्वितीय , नंदीवर्मन द्वितीय थे ।
पल्लव वंश का अंतिम शासक अपराजित वर्मन हुआ ।
मतविलास प्रहसन की रचना महेंद्र वर्मन प्रथम ने की थी ।
महाबलीपुरम् के एकाश्म मंदिर जिन्हें रथ कहा गया है, का निर्माण पल्लव राजा नरसिंह वर्मन प्रथम के द्वारा करवाया गया था । रथ मंदिरों की संख्या सात है । रथ मंदिरों में सबसे छोटा द्रोपती रथ है जिसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं मिलता है ।
वातपीकोण्ड की उपाधि नरसिंह वर्मन प्रथम ने धारण की थी ।
अरबों के आक्रमण के समय पल्लवों का शासक नरसिंह वर्मन द्वितीय था । उसने राजासिंह ,आगमप्रिय तथा शंकरभक्तं की उपाधि धारण की । उसने काँची के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण करवाया जिसे राजसिद्धेश्वर मंदिर भी कहा जाता है ।
दशकुमारचरित के लेखक दण्डी नरसिंहवर्मन द्वितीय के दरबार में रहते थे ।
काँची के मुक्तेश्वर मंदिर तथा बैकुण्ड पेरूमाल मंदिर का निर्माण नंदीवर्मन द्वितीय ने करवाया ।
प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरुमग्ड़ई अलवार नंदी वर्मन द्वितीय के समाकालीन थे ।
पल्लव वास्तुकला ही दक्षिण की द्रविड़ कला शैली का आधार बनी ।
(2) राष्ट्रकूट वंश
राष्ट्रकूट राजवंश का संस्थापक दंतीदुर्ग (752 ई.) था । इसकी राजधानी मनकिर या मान्यखेत थी ।
राष्ट्रकूट वंश के प्रमुख शासक कृष्ण प्रथम , ध्रुव, गोविंद तृतीय,अमोघवर्ष ,कृष्ण द्वितीय ,इंद्र तृतीय एवं कृष्ण तृतीय थे ।
एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने करवाया था ।
ध्रुव राष्ट्रकूट वंश का पहला शासक था, जिसने कन्नौज पर अधिकार करने हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया और प्रतिहार नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया ।
ध्रुव को ‘धारावर्ष ‘ भी कहा जाता था ।
अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयायी था । इसने कन्नड़ में कविराजमार्ग की रचना की ।
आदिपुराण के रचनाकार जिनसेन , गणितासार संग्रह के लेखक महावीराचार्य एवं अमोघवृत्ति के लेखक सत्तायना अमोघवर्ष के दरबार में रहते थे ।
अमोघवर्ष ने तुंगभद्रा नदी में जल समाधि लेकर अपने जीवन का अंत किया ।
इंद्र-lll के शासनकाल में अरब निवासी अलमसूदी भारत आया ।
राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक कृष्ण तृतीय था । इसी के दरबार में कन्नड़ भाषा के कवि पोन्न रहते थे, जिन्होंने शांतिपुराण की रचना की ।
एलोरा एवं एलिफेंटा (महाराष्ट्र) गुहामंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूटों के समय में ही हुआ ।
राष्ट्रकूट शैव ,वैष्णव ,शाक्त संप्रदायों के साथ-साथ जैन धर्म की भी उपासक थे ।
कल्याणी के चालुक्य तैलप द्वितीय ने 973 ईसवी में कर्क को हराकर राष्ट्रकूट राज्य पर अपना अधिकार कर लिया और कल्याणी के चालुक्य वंश की नींव डाली ।
(3) चालुक्य वंश (कल्याणी )
कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना तैलप द्वितीय ने की थी । इसकी राजधानी मान्यखेत थी ।
चालुक्य वंश (कल्याणी) के प्रमुख शासक तैलप प्रथम , तैलप द्वितीय , विक्रमादित्य , जय सिंह, सोमेश्वर, सोमेश्वर द्वितीय ,विक्रमादित्य -Vl , सोमेश्वर तृतीय , तैलप-III
सोमेश्वर प्रथम ने मान्यखेत से राजधानी हटाकर कल्याणी (कर्नाटक) को बनाया ।
इस वंश का सबसे प्रतापी शासक विक्रमादित्य-VI था ।
विल्हण एंव विज्ञानेश्वर विक्रमादित्य-VI के दरबार में रहते थे ।
मिताक्षरा (हिंदू विधि ग्रंथ ) नामक ग्रंथ की रचना महान विधिवेत्ता विज्ञानेश्वर ने की थी ।
विक्रमांकदेवचरित की रचना विल्हण ने की थी । इसमें विक्रमादित्य-VI के जीवन पर प्रकाश डाला गया है ।
(4) चालुक्य वंश (वातापी )
जयसिंह ने वातापी के चालुक्य वंश की स्थापना की, जिसकी राजधानी वातापी थी ।
चालुक्य वंश (वातापी) के प्रमुख शासक पुलकेशिन प्रथम, कीर्तिवर्मन, पुलकेशिन द्वितीय, विक्रमादित्य, विनयादित्य एवं विजयादित्य ।
चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी राजा पुलकेशिन द्वितीय था । जिनेंद्र का मेगुती मंदिर पुलकेशिन द्वितीय ने बनवाया था ।
पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को हराकर परमेश्वर की उपाधि धारण की थी । इसने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि भी धारण की थी ।
एहोल अभिलेख का संबंध पुलकेशिन द्वितीय से है ( लेखक- रवि कीर्ति )
अजंता के एक गुहाचित्र में फारसी दूत मंडल को स्वागत करते हुए पुलकेशिन द्वितीय को दिखाया गया है ।
कीर्तिवर्मन प्रथम ने बादामी(वातापी) का राजधानी के रूप में नवनिर्माण किया , इसलिए वतापी का निर्माणकर्ता कीर्तिवर्मन को माना जाता है ।
मालवा को जीतने के बाद विनयादित्य ने सकलोत्तरपथनाथ की उपाधि धारण की ।
इस वंश का अंतिम राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय था । इसे इसके सामंत दंतीदुर्ग ने परास्त कर एक नए वंश राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की ।
एहोल को मंदिरों का शहर कहा जाता है ।
(5) चालुक्य वंश (बेंगी )
बेंगी के चालुक्य वंश का संस्थापक विष्णुवर्धन था । उसकी राजधानी बेंगी (आंध्र प्रदेश) में थी ।
चालुक्य वंश (बेंगी) के प्रमुख शासक जयसिंह प्रथम, इंद्रवर्धन, विष्णुवर्धन द्वितीय, जयसिंह द्वितीय एवं विष्णुवर्धन तृतीय ।
इस वंश के सबसे प्रतापी राजा विजयादित्य तृतीय था , जिसका सेनापति पंडरंग था ।
(6) यादव वंश
देवगिरि के यादव वंश की स्थापना भिल्लन पंचम ने की । इसकी राजधानी देवगिरी थी ।
इस वंश का सबसे प्रतापी राजा सिंहण था ।
इस वंश का अंतिम स्वतंत्र शासक रामचंद्र था ,जिसने अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफूर के सामने आत्मसमर्पण किया ।
(7) होयसल वंश
द्वार समुद्र के होयसल वंश की स्थापना विष्णु वर्धन ने की थी । इनकी राजधानी द्वार समुद्र थी ।
होयसल वंश यादव वंश की एक शाखा थी ।
बेल्लूर में चेन्ना केशव मंदिर का निर्माण विष्णु वर्धन ने 1117 ई. में किया था ।
होयसल वंश का अंतिम शासक वीर बल्लाल तृतीय था , जिसे मलिक काफूर ने हराया था ।
(8) कदम्ब वंश
कदम्ब वंश की स्थापना मयूर शर्मन ने की थी । इनकी राजधानी वनवासी थी ।
(9) गंग वंश
गंग वंश का संस्थापक ब्रजहस्त पंचम था । इनकी प्रारंभिक राजधानी कुवलाल थी, जो बाद में तलकाड हो गई ।
अभिलेखों के अनुसार गंग वंश के प्रथम शासक कोंकणी वर्मा था ।
‘दत्तकसूत्र’ पर टिका लिखने वाला गंग शासक माधव प्रथम था ।
(10) काकतीय वंश
काकतीय वंश का संस्थापक बीटा प्रथम था । इसकी राजधानी अंमकोण्ड थी ।
इस वंश का सबसे शक्तिशाली शासक गणपति था । रुद्रमादेवी गणपति की बेटी थी ,जिसने रूद्रदेव महाराज का नाम ग्रहण किया, जिसने 35 वर्ष तक शासन किया ।
गणपति ने अपनी राजधानी वारंगल में स्थानांतरित कर ली थी ।
इस राजवंश का अंतिम शासक प्रताप रूद्र था ।
(11) चोल वंश
9 वीं शताब्दी में चोल वंश पल्लवों के ध्वंसावशेषों पर स्थापित हुआ । इस वंश के संस्थापक विजयालय(850-87) थे । जिसकी राजधानी तंजावुर थी । तंजावुर का वास्तुकार कुंजरमल्लन राजराज पेरूथच्चन था ।
विजयालय में नरकेसरी की उपाधि धारण की और निशुंभासुदिनी देवी का मंदिर बनवाया ।
चोलों का स्वतंत्र राज्य आदित्य प्रथम ने स्थापित किया । पल्लवों पर विजय पाने के उपरांत आदित्य प्रथम ने कोदण्डराम की उपाधि धारण की ।
चोल वंश के प्रमुख राजा परांतक-I, राजराज-I, राजेंद्र प्रथम, राजेंद्र द्वितीय एवं कुलोत्तुंग ।
तक्कोलम के युद्ध में राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय ने परांतक प्रथम को पराजित किया । इस युद्ध में परांतक प्रथम का बड़ा लड़का राजादित्य मारा गया ।
राजराज प्रथम ने श्रीलंका पर आक्रमण किया । श्री लंका के राजा महिम- V को भागकर श्रीलंका के दक्षिण जिला रोहण में शरण लेनी पड़ी ।
राजराज प्रथम ने श्रीलंका के विजित प्रदेशों को चोल साम्राज्य का एक नया प्रांत मुम्ड़िचोलमंडलम बनाया और पोलन्नरूवा को इसकी राजधानी बनाया ।
राजराज प्रथम शैव धर्म का अनुयायी था । इसमें तंजौर में राजराजेश्वर का शिव मंदिर बनवाया ।
चोल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार राजेंद्र प्रथम के शासनकाल में हुआ है । बंगाल के पाल शासक महिपाल को पराजित करने के बाद राजेंद्र प्रथम ने गंगैकोडचोल की उपाधि धारण की ।
राजेंद्र द्वितीय ने प्रकेसरी की एवं वीर राजेंद्र ने राजकेसरी की उपाधि धारण की ।
चोल वंश का अंतिम राजा राजेंद्र तृतीय था ।
चोल साम्राज्य का प्रशासन (विशेषताएं )
स्थानीय स्वशासन चोल प्रशासन की मुख्य विशेषता थी ।
चोल काल में भूमिकर 1/3 भाग हुआ करता था ।
गांव में कार्य समिति की सदस्य के लिए जो वेतनभोगी कर्मचारी रखे जाते थे ,उन्हें मध्यस्थ कहते थे ।
चोलकाल में भूमि के प्रकार
वेल्लनवगाई :- गैर ब्राह्मण किसान स्वामी की भूमि ।
ब्रह्मदेय:- ब्राह्मणों को उपहार में दी गई भूमि
शालाभोग :- किसी विद्यालय के रखरखाव की भूमि
तिरूनमटड्क्कनी :- मंदिर को उपहार में दी गई भूमि
पल्लिच्चंदम :- जैन संस्थानों को दान दी गई भूमि
महत्वपूर्ण बिंदु :-
(1) चोल सेना का सबसे संगठित अंग था -पदाति सेना
(2) चोल काल में कंलजू सोने के सिक्के थे ।
(3) चोलकालीन नटराज प्रतिमा को चोल कला का सांस्कृतिक सार या निचोड़ कहा जाता है ।
(4) चोल काल का सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह कावेरिपट्टनम था ।
(5) चोल काल में सड़कों की देखभाल बगान समिति करती थी ।
(6) शैव सन्त इसानशिव पंडित राजेंद्र प्रथम के गुरु थे ।
(7) पंप, पोन्न एवं रन्न कन्नड़ साहित्य के त्रिरत्न माने जाते थे ।
(8) पर्सी ब्राऊन ने तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर के विमान को भारतीय वास्तुकला का निकष माना है ।
(9) कंबन,औट्टक्कुट्टन और पुगलेंदि को तमिल साहित्य का त्रिरत्न कहा जाता है ।
(10) तमिल कवियों में जयन्गोंदर प्रसिद्ध कवि था, जो कुलोतुँग प्रथम का राज कवि था । उसकी रचना है- कलिंगतुपर्णि
राजवंश | संस्थापक | राजधानी |
पल्लव वंश | सिंहविष्णु | काँचीपुरम् |
राष्ट्रकूट वंश | दन्तिदुर्ग | मान्यखेत |
चालुक्य वंश (कल्याणी ) | तैलप द्वितीय | मान्यखेत |
चालुक्य वंश (वातापी ) | जयसिंह प्रथम | वातापी |
चालुक्य वंश (बेंगी ) | विष्णुवर्धन | बेंगी |
चोल वंश | विजयालय | तंजौर |
यादव वंश | भिल्लन पंचम | देवगिरी |
होयसल वंश | विष्णु वर्धन | द्वार समुद्र |
कदम्ब वंश | मयूर शर्मन | वनवासी |
गंग वंश | ब्रजहस्त पंचम | तलवाड |
काकतीय वंश | बीटा प्रथम | अंमकोण्ड |
- हर्षवर्धन काल , प्रशासन तथा सांस्कृतिक उपलब्धियां
- गुप्त वंश या गुप्त काल का इतिहास
- मौर्य वंश का इतिहास और स्रोत