हिंदी वर्णमाला (Hindi varnamala)
भाषा – परस्पर विचार विनिमय के माध्यम को भाषा कहते हैं ।
सार्थक ध्वनियों का वह समूह है जिसके माध्यम से हम अपने विचार दूसरों के समक्ष रख सकते हैं और दूसरों के विचारों से अवगत हो सकते हैं ।
भाषा के दो रूप हमारे सामने आते हैं –
१. मौखिक
२. लिखित
Varnamala in Hindi

लिपि – किसी भाषा को लिखने का ढंग लिपि कहलाता है । हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है ।
व्याकरण – भाषा को शुद्ध रूप में बोलना ,लिखना, एवं पढ़ना ,सीखने की विधि व्याकरण कहलाती है ।
भाषा के मुख्य तीन अंगों के आधार पर व्याकरण को तीन भागों में बांटा गया है –
१. वर्ण विचार
२. शब्द विचार
३. वाक्य विचार
वर्ण ( Varn in Hindi )
हिंदी भाषा में वर्ण वह मूल ध्वनि है, जिसका विभाजन नहीं हो सकता ।
भाषा की वह सबसे लघुतम इकाई, जिसके पुन: दो भाग न किये जा सके, वर्ण कहलाते हैं ।
हिंदी भाषा में संपूर्ण वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं ।
हिंदी वर्णमाला में 48 वर्ण माने गये हैं जिनका निम्न प्रकार से विभाजित किया जा गया है –
स्वर वर्ण | 11 |
व्यंजन वर्ण | 25 |
अंतस्थ व्यंजन | 4 (य,र,ल,ब) |
उष्म व्यंजन | 4 (ह,श,ष,स) |
संयुक्त व्यंजन | 4 (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र ) |
स्वर वर्ण :- ( Swar in Hindi)
वे वर्ण ध्वनियाँ जिनके उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता न लेनी पड़े, स्वर वर्ण कहलाते हैं ।
Swar Kitne hote Hain
हिंदी वर्णमाला के 11 स्वर वर्ण –
अ,आ , इ, ई, उ, ऊ ,ऋ ,ए ,ऐ ,ओ ,औ |
उच्चारण ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा भाषा के परिष्कृत रूप की पहचान की जा सकती है ।
उच्चारण स्थान-
मुख के वे भाग जिसके प्रयोग द्वारा उच्चारण किया जाये, उच्चारण स्थान कहलाते हैं ।
1. कण्ठ – अ,आ,क वर्ग वर्ण ( क्,ख्,ग्,घ्,ड़्), ह तथा विसर्ग (:)
2. तालू – इ,ई,च वर्ग के वर्ण ( च्,छ्,ज्,झ्,ञ्)
3. मूर्धा – ऋ , ऋृ , ट वर्ग के वर्ण ( ट्,ठ्,ड्,ढ्,ण्) र् ,ष्
4. दन्त – लृ, त वर्ग के वर्ण ( त् , थ् , द् , ध् , न् )ल् ,स्
5. ओष्ठय – उ, ऊ, प वर्ग के वर्ण ( प् , फ् , ब् , भ् , म् )
6. नासिका – ञ् , ण् , न् , म्
7. कण्ठतालु – ए , ऐ
8. कण्ठोष्ठ – ओ ,औ
9. दन्तोष्ठ – व
नोट:- (१) ‘व’ का उच्चारण दन्त्य और ओष्ठ्य से होता है ,अत: यह ‘दन्तयोष्ठ्य‘ कहलाता है ।
(२) ‘ए’ , ‘ऐ’ का उच्चारण कण्ठ्य और तालु से होता है अतः ये ‘ कण्ठतालव्य‘ कहलाते हैं ।
(३) ‘ओ’ ,’औ’ का उच्चारण कण्ठ और ओष्ठ्य से होता है , अत: ये ‘कण्ठोष्ठ्य‘ कहलाते हैं ।
व्यंजन ( Vjanjan in Hindi)
ध्वनियों के उच्चारण में होने वाले यत्न को व्यंजन कहा जाता है ।
Vyanjan Kitne Hote Hain
(अ) अल्पप्राण व्यंजन –
इन व्यंजनों के उच्चारण में वायु की मात्रा कम होती है ।
जैसे – क, ग, ड़, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त ,द, न ,प, ब, म , (हर वर्ग का पहला, तीसरा, पांचवा वर्ण ) य,र, ल, व
(ब) महाप्राण व्यंजन –
इन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास- वायु अधिक मात्रा में प्रयुक्त होती है ।
जैसे :- ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, भ, फ ( हर वर्ग का दूसरा तथा चौथा वर्ण) ह, न , म, ल
(स) स्पर्श व्यंजन –
इन व्यंजनों के उच्चारण के समय हमारी जीभ, होंठ, दाँत आदि परस्पर स्पर्श करके वायु को रोकते हैं ।
जैसे :- क, ख, ग, घ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ,द, ध, प, फ, ब, भ (हर वर्ग के पहले चार वर्ण )
(द) नासिक्य व्यंजन –
इन व्यंजनों के उच्चारण के समय मुख- अवयव वायु को रोकते हैं ,परंतु वायु पूरी तरह मुख से न निकलकर नाक से निकलती है ।
जैसे :- ड़, ञ, ण ,न ,म (हर वर्ग का पाँचवा वर्ण)
(य) स्पर्श-संघर्षी व्यंजन –
इन व्यंजनों के उच्चारण में वायु पहले किसी मुख-अवयव से स्पर्श करती है, फिर रगड़ कर बाहर निकलती है ।
(र) संघर्षी व्यंजन –
इन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास- वायु मुख अवयवों से घर्षित होते हुए बाहर निकलती है ।
(ल) अन्त: स्थ व्यंजन –
इनके उच्चारण में वायु का अवरोध बहुत कम होता है ।
जैसे – य, र, ल, व
(व) उत्क्षिप्त व्यंजन –
व्यंजनों के उच्चारण में जीभ का अग्र भाग मूर्धा को स्पर्श करके झटके से वापस आये, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं ।
जैसे :- ट, ठ, ड, ढ, ड़, ढ़,
अनुस्वार ( -ं )
हिंदी में अनुस्वार एक नासिक्य व्यंजन है । प्राय: इसे स्वर या व्यंजन के ऊपर लगाया जाता है ।
जैसे :- अंक, कंगन, हंस आदी ।
अनुनासिक ( -ँ )
अनुनासिकता स्वरों का गुण है। इसे चंद्रबिंदु भी कहते हैं ।
जैसे :- चाँद
विसर्ग ( : )
विसर्ग का उच्चारण ‘ह्’ के रूप में होता है ।
जैसे :- मन: = मनह्