सीमावर्ती राजवंशों का उदय – पाल वंश, सेन वंश तथा कश्मीर के राजवंश का इतिहास

Pal Vansh ka Itihas and Kashmir ke Rajvansh 

सीमावर्ती राजवंशों का उदय

(1) पाल वंश
(2) सेन वंश
(3) कश्मीर के राजवंश
(4) कामरूप का वर्मन वंश

pal vansh ka itihas
pal vansh ka itihas

प्राचीन भारत का इतिहास

(1) पाल वंश

पाल वंश का संस्थापक गोपाल(750 ई.) था । इस वंश की राजधानी मुंगेर थी ।

गोपाल बौद्ध धर्म का अनुयायी था । इसने ओदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना की थी ।

पाल वंश के प्रमुख शासक धर्मपाल, देवपाल, नारायण पाल, महिपाल, नयपाल आदी ।

पाल वंश का सबसे महान शासक धर्मपाल था जिसने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की थी ।

कन्नौज के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष पाल वंश, गुर्जर प्रतिहार वंश एवं राष्ट्रकूट वंश के बीच हुआ । इसमें पाल वंश की ओर से सर्वप्रथम धर्मपाल शामिल हुआ था ।

11 वीं सदी के गुजराती कवि सोड्ठल ने धर्मपाल को ‘उत्तरापथ स्वामी’ की उपाधि से संबोधित किया है । सोमपुर महाविहार का निर्माण धर्मपाल ने करवाया था ।

प्रसिद्ध बौद्ध लेखक हरीभद्र धर्मपाल के दरबार में निवास करते थे ।

ओदंतपुरी (बिहार) के प्रसिद्ध बौद्धमठ का निर्माण देवपाल ने करवाया था ।

महिपाल प्रथम को पाल वंश का दूसरा संस्थापक माना जाता है । इसके काल में राजेंद्र चोल ने बंगाल पर आक्रमण किया तथा पाल शासक महिपाल को पराजित किया ।

महिपाल ने बौद्ध भिक्षु अतिस के नेतृत्व में तिब्बत में एक धर्म प्रचारक मंडल भेजा था ।

पाल कलाकारों को कांस्य की मूर्तियाँ बनाने में महारत हासिल थी ।

गौड़ीरीती नामक साहित्यिक विद्या का विकास पाल शासकों के समय में हुआ ।

(2) सेन वंश

सेन वंश की स्थापना सामन्त सेन ने रोढ़ में की थी । इसकी राजधानी नदिया (लखनौती) थी ।

सेन वंश के प्रमुख शासक विजय सेन, बल्लाल सेन एवं लक्ष्मण सेन थे ।

इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक विजय सेन था, जो शैवधर्म का अनुयायी था । कवि धोयी द्वारा रचित देवपाड़ा प्रशस्ति लेख में विजय सेन की यशस्वी विजयों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि उसने नेपाल एवं मिथिला को पराजित किया ।

विजय सैन ने विजयपुरी तथा विक्रमपुर की स्थापना की ।

विजय सेन देवपाड़ा में प्रद्युम्नेश्वर मंदिर की स्थापना की थी ।

विजय सेन की मृत्यु के बाद बल्लाल सेन शासक बना । इसे बंगाल में ‘जाति प्रथा’ तथा ‘कुलीन प्रथा’ को संगठित करने का श्रेय प्राप्त है ।

बल्लाल सेन कुलीनवाद के नाम से प्रसिद्ध एक सामाजिक आंदोलन का प्रचलनकर्ता भी था ।

बल्लाल सेन स्वयं विद्वान तथा विद्वानों का सरंक्षण था । उसने ‘दानसागर’ ग्रंथ की रचना की थी तथा एक अन्य ग्रंथ ‘अद्भुत सागर’ की रचना को प्रारम्भ किया था किंतु उसे पूर्ण नहीं कर पाया ।

गौडेश्वर एवं ‘नि:शक शंकर’ की उपाधि बल्लाल सेन ने धारण की थी ।

बल्लाल सेन के बाद लक्ष्मण सेन शासक बना तथा बल्लाल सेन द्वारा रचित ‘अद्भुत सागर’ ग्रंथ को पूर्ण किया ।

लक्ष्मण सेन की राज्यसभा में गीतगोविंद के लेखक जयदेव, पवनदूत के लेखक धोयी एवं ब्राह्मणसर्वस्व के लेखक हलायुद्ध रहते थे ।

हलायुद्ध लक्ष्मण सेन का प्रधान न्यायाधीश व मुख्यमंत्री था ।

लक्ष्मण सेन बंगाल का अंतिम हिंदू शासक था ।

सेन राजवंश प्रथम राजवंश था, जिसने अपना अभिलेख सर्वप्रथम हिंदी में उत्कीर्ण करवाया ।

(3) कश्मीर के राजवंश

कश्मीर के हिंदू राज्य का इतिहास कल्हण की राजतरंगिणी से ज्ञात होता है ।

कश्मीर पर शासन करने वाले शासक वंश कालक्रम से इस प्रकार थे – कार्कोट वंश, उत्पल वंश, लोहार वंश

कार्कोट वंश –

627 ई. में दुर्लभवर्द्धन नामक व्यक्ति ने कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना की थी । चीनी यात्री हेनसांग ने इसके शासनकाल में कश्मीर की यात्रा की ।

कार्कोट वंश का सबसे शक्तिशाली राजा ललितादित्य मुक्तापीड था । कश्मीर का मार्त्तण्ड- मंदिर का निर्माण इसके द्वारा करवाया गया था ।

उत्पल वंश –

कार्कोट वंश के बाद कश्मीर पर उत्पल वंश का शासन हुआ । इस वंश का संस्थापक अवन्तिवर्मन था । अवन्तिपुर नामक नगर की स्थापना अवन्तिवर्मन ने की थी ।

अवन्तिवर्मन के अभियंता सूय्य ने सिंचाई के लिए नहरों का निर्माण करवाया ।

980 ई. में उत्पल वंश की रानी दिद्दा एक महत्वकांक्षिणी शासिका हुई ।

लोहार वंश –

उत्पल वंश के बाद कश्मीर पर लोहार वंश का शासन हुआ । इस वंश का संस्थापक संग्राम राज था । संग्रामराज ने अपने मंत्री तुंग को भटिंडा के शाही शासक त्रिलोचन पाल की ओर से महमूद गजनवी से लड़ने के लिए भेजा ।

संग्रामराज के बाद अनन्त राजा हुआ । इसकी पत्नी सूर्यमती ने प्रशासन को सुधारने में उसकी सहायता की ।

लोहार वंश का शासक हर्ष विद्वान ,कवि तथा कई भाषाओं का ज्ञाता था । कल्हण हर्ष का आश्रित कवि था ।

हर्ष को ‘कश्मीर का नीरो’ भी कहा जाता था । वह सामाजिक सुधारों एवं फैशन के नवीन मानदंडों का संस्थापक था ।

जयसिंह लोहार वंश का अंतिम शासक था , जिसने 1128 ईस्वी से 1155 ईस्वी तक शासन किया । जयसिंह के शासन के साथ ही कल्हण की राजतरंगिणी का विवरण समाप्त हो जाता है ।

(4) कामरूप का वर्मन वंश

चौथी शताब्दी के मध्य कामरूप में वर्मन वंश का उदय हुआ । इस वंश का संस्थापक पुष्यवर्मन था । इसकी राजधानी प्रागज्योतिष नामक स्थान पर थी ।

Pal Vansh ka Itihas (प्राचीन भारत का इतिहास)

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