राजस्थान का जनजातिय आंदोलन (Rajasthan ka Janjati Aandolan)

आज हम राजस्थान का जनजातिय आंदोलन (Rajasthan ka Janjati Aandolan) की बात करेंगे ।

Rajasthan ka Janjati Aandolan
Rajasthan ka Janjati Aandolan

Rajasthan me JanJati Aandolan in Hindi

  • मेवाड़ के दक्षिणी पश्चिमी भाग में रहने वाले जनजाति के लोगों भीलों व गरासियों ने राज्य और जागीरदारों द्वारा किए जाने वाले विभिन्न अत्याचारों के विरुद्ध लड़ने के लिए स्वयं को संगठित किया ।
  • मेवाड़ का पहाड़ी क्षेत्र , जहाँ भील और गरासिया रहते थे, ‘भोमट’ (भूमट) कहलाता था ।

भगत आंदोलन ( Bhagat Aandolan)

  • बीसवीं सदी के प्रारंभ में डूँगरपुर और बाँसवाड़ा राज्य में सुर्जी भगत और गोविंद गिरी के नेतृत्व में शक्तिशाली भील आंदोलन प्रारंभ हुआ ।
  • गोविंद गिरी का जन्म डूँगरपुर राज्य के बाँसिया गाँव में 20 दिसंबर 1858 को एक बंजारा परिवार में हुआ ।
  • गोविंद गुरु ने बूँदी के दशनामी अखाड़ा के गुरु राजगिरी से दीक्षा ली थी ।
  • गुरु गोविंद में स्वामी दयानंद सरस्वती की प्रेरणा से जनजातियों की सेवा का प्रण किया और उन्होंने अपनी सबसे पहली धूणी अपनी ग्राम के निकट छाणी डूँगरी में स्थापित की । उनका प्रथम शिष्य डूँगरपुर राज्य के सुराता ग्राम का निवासी कुरिया था ।
  • गोविंद गिरी भीलों को नैतिक व आध्यात्मिक शिक्षा देने लगे । इस सुधार आंदोलन के प्रभाव में भील सदियों पुरानी सामाजिक-धार्मिक बंधन व रूढ़ियों से स्वतंत्र होने लगे । गोविंद गिरी के विचारों ने भीलों को जागृत किया व उन्हें अपनी दशाओं व अधिकारों के प्रति जागरूक बनाया ।
  • गुरु गोविंद गिरी ने 1883 ईसवी में ‘सम्पसभा’ (सिरोही) की स्थापना की व उन्हें हिंदू धर्म के दायरे में बनाए रखने के लिए ‘भगतपंथ’ की स्थापना की ।
  • ‘सम्प सभा’ का तात्पर्य था -‘पारस्परिक प्रेम व एकता का संवर्धन करने वाला संगठन ।’
  • उन्होंने सामाजिक कुरीतियों , दमन व शोषण से जूझ रहे समाज को उभारने के लिए राजस्थान, गुजरात व मध्यप्रदेश के सरहदी दक्षिणांचल वागड़ को कर्मस्थली बनाया ।
  • गुरु गोविंद गिरी ने सम्पसभा का प्रथम अधिवेशन 1903 में मानगढ़ पहाड़ी (गुजरात) पर किया जिसमें भील-गरासिया आदि जनजातियों ने शराब नहीं पीने, झगड़ा न करने एवं बच्चों को पढ़ाने की शपथ ली ।
  • गोविंद गिरी द्वारा राजस्थान के डूँगरपुर व बाँसवाड़ा की सदियों से शोषित व उत्पीड़ित भील जनजाति को संगठित कर उनमें सामाजिक जागृति व नवजीवन के संचार हेतु चलाए गए आंदोलन को ‘भगत आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है ।
  • भील विद्रोह के कारण :-
    (१) वन उत्पादों के नि:शुल्क उपभोग के अधिकार की समाप्ति
    (२) नवीन भू-राजस्व व्यवस्था
    (३) बैठ-बेगार प्रथा
    (४) दोषपूर्ण आबकारी नीति
    (५) अंग्रेजों की भेदभाव पूर्ण नीति
    (६) सत्ता पक्ष द्वारा भीलों के साथ किया जाने वाला दुर्व्यवहार
  • 17 नवंबर 1913 ईस्वी में गोविंद गिरी की अध्यक्षता में मानगढ़ में द्वितीय अधिवेशन का आयोजन हुआ । उस दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा थी । उसी समय कर्नल शटन के आदेश पर मेजर हैमिल्टन , मेजर बेले और कैप्टन स्टॉकले की अगुवाई में मेवाड़ भील कोर व रजवाड़ों की अपनी सेना बड़ौदा से 104 वेलेजली राइफल्स और अहमदाबाद के सातवीं राइफल जाट रेजीमेंट ने संयुक्त रूप से वहां पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसाना शुरू कर दिया , जिसमें 1500 आदिवासी शहीद हुए । गोविंद गिरी व डूँगर के पटेल पुन्जा धीर को बंदी बना लिया गया । इस प्रकार भील क्रांति को निर्दयतापूर्वक कुचल दिया गया । मानगढ़ हत्याकांड ‘राजस्थान में जलियांवाला बाग हत्याकांड’ के नाम से जाना जाता है ।
  • गोविंद गिरी ने अपना अंतिम समय गुजरात के कम्बोई ( कममोई) में बिताया । वहीं 30 अक्टूबर 1931 को उनका देहांत हो गया ।

एकी आंदोलन /भोमट भील आंदोलन :-

  • अंग्रेजों द्वारा भगत आंदोलन कुचल दिए जाने के बाद भीलों आंदोलन कुछ समय के लिए निष्क्रिय हो गया ।
  • जुलाई,1921 में मेवाड़ के खालसा इलाके में रहने वाले भीलों को उकसाने पर मादरी पट्टे के भीलों ने भूराजस्व और लाग-बाग देने से मना कर दिया । इस समय भीलों को मोतीलाल तेजावत का प्रेरक नेतृत्व प्राप्त हो गया ।
  • मोतीलाल तेजावत का जन्म 1886 ई. में राजस्थान के उदयपुर राज्य के झाड़ोल ठिकाने के अंतर्गत कोलियारी ग्राम के एक ओसवाल परिवार में हुआ था ।
  • असहयोग आंदोलन की जागृति के प्रभाव में 1921 में मेवाड़ व अन्य राज्यों के भीलों व गरासियों ने मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में आंदोलन छेड़ा ।
  • भीलों को अन्याय व अत्याचार , शोषण व उत्पीड़न से मुक्त करने हेतु संगठित करने के उद्देश्य से श्री मोतीलाल तेजावत ने उन्हें एकता के सूत्र में आबद्ध किया । भीलों में एकता स्थापित करने के इस अभियान को ही एकी आंदोलन कहा जाता है । चूँकि यह आंदोलन भील क्षेत्र ‘भोमट’ में चलाया गया । इसलिए इसे भोमट भील आंदोलन भी कहा जाता है ।
  • एकी आंदोलन के कारण :-
    (१) ‘बराड’ आदि राजकीय करों की वसूली में भीलों के साथ क्रुरतापूर्ण व्यवहार ।
    (२) डाकन प्रथा पर रोक व अन्य सामाजिक सुधारों से भी लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत ।
    (३) बिना भू राजस्व चुकाए खेती करने व वनोत्पादों को संचित करने के भीलों के परंपरागत अधिकारों पर रोक लगाना ।
    (४) तंबाकू, अफीम, नमक आदि पर नए कर लगाना ।
    (५) अत्यधिक लाग-बाग व बैठ बेगार प्रथा ।
  • श्री मोतीलाल तेजावत ने चित्तौड़गढ़ की राशमी तहसील के मातृकुण्डिया स्थान के मेले के अवसर पर किसानों की एक बैठक में एकी आंदोलन की शुरुआत की ।
  • मोतीलाल तेजावत ने आदिवासी किसानों पर होने वाले अत्याचारों के संबंध में तथ्य एकत्रित कर उन्होंने 21 माँगों का समावेश करते हुए ‘मेवाड़ की पुकार’ नामक पुस्तिका तैयार की व मेवाड़ के महाराणा के समक्ष प्रस्तुत की ।
  • झाड़ोल ठिकाना श्री मोतीलाल तेजावत की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था ।
  • श्री मोतीलाल तेजावत ने विजयनगर राज्य के नीमड़ा गाँव में 1921 ईस्वी में एक सम्मेलन बुलाया जिसे सफल होने से रोकने के लिए मेवाड़ भील कोर के सैनिकों ने नीमड़ा गांव में अंधाधुंध गोलियां चलाकर सैकड़ो आदिवासियों को मार डाला । इस नरसंहार में लगभग 1200 आदिवासी भील मारे गए ।
  • 1921 में तेजावत के नेतृत्व में हजारों किसान आदिवासियों ने महाराणा को ज्ञापन देने के लिए उदयपुर की यात्रा की । भील आंदोलन के बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए 1 जनवरी 1922 को उदयपुर राज्य व ब्रिटिश अधिकारियों ने भीलों को कुछ छूट देने का निर्णय लिया ।
  • 7 मार्च 1922 को ईडर राज्य के अंतर्गत पोल स्थान पर की गई सैनिक कार्यवाही इस दिशा में पहला दमनात्मक कदम था । मेजर सटन की कमाण्ड मेवाड़ भील कोर ने उन्हें घेर लिया व उनके ऊपर गोलियां दागी ।
  • 5 मई 1922 को सेना ने मेजर प्रिचार्ड के नेतृत्व में वेलोरिया गाँव में तथा 6 मई को भूला व नवापाड़ा आदि गांवों पर आक्रमण किया ।
  • राजस्थान सेवा संघ, अजमेर ने रामनारायण चौधरी तथा सत्य भगत को घटना की जांच करके रिपोर्ट देने के लिए कहा । उन्होंने ‘सिरोही राज्य में दूसरी भील त्रासदी ‘ शीर्षक से अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की ।
  • श्री मोतीलाल तेजावत ने महात्मा गांधी की सलाह पर 3 जून 1929 को ईडर राज्य की पुलिस के सामने खेड़ब्रह्म नामक गाँव में आत्मसमर्पण कर दिया ।
  • 5 दिसंबर 1963 को मोतीलाल तेजावत का निधन हो गया ।

वनवासी सेवा संघ :-

  • भीलों सहित आदिवासियों में जागरण की लहर लाने के प्रयासों की श्रृंखला में सर्व श्री भुरेलाल बया, भोगीलाल पंड्या व राजकुमार मानसिंह जैसे समाज सुधारकों ने ‘वनवासी सेवा संघ’ की स्थापना कर भीलों में सामाजिक व राजनीतिक चेतना लाने का प्रयास किया ।
  • इसके अलावा माणिक्य लाल वर्मा , बलवंत सिंह मेहता , मामा बालेश्वर दयाल , श्री हरिदेव जोशी व श्री गौरीशंकर उपाध्याय के नाम भी प्रमुख हैं ।
  • उन्होंने आदिवासी भीलों के लिए स्कूलें, प्रौढ़ शिक्षा केंद्र , छात्रावास आदि सुविधाएं उपलब्ध करवाकर उनमें नई चेतना का प्रसार किया ।

मीणा आंदोलन :-

  • सन् 1924 के क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट तथा जयपुर राज्य के जरायम पेशा कानून, 1930 के तहत इन्हें जरायम पेशा मानकर सभी स्त्री-पुरुषों को रोजाना थाने पर उपस्थिति देने के लिए पाबंद किया ।
  • छोटूराम झरवाल , महादेव राम पबड़ी , जवाहरराम , मनोलाल आदि मीणों ने मीणों के विरुद्ध सरकार की कार्यवाही के विरोध में ‘मीणा जाति सुधार कमेटी ‘ नामक एक संस्था की स्थापना की ।
  • सन् 1933 में मीणा क्षत्रिय महासभा की स्थापना हुई ।
  • नीमकाथाना में जैन मुनि मगनसागर जी की अध्यक्षता में अप्रैल 1944 को हुए एक सम्मेलन में “जयपुर राज्य मीणा सुधार समिति “ की स्थापना की गई ।
  • मीणा पुराण की रचना जैन मुनि मगनसागर जी ने की थी , मीणा का शाब्दिक अर्थ मछली होता है ।
  • राज्य मीणा सुधार समिति में श्री बंशीधर शर्मा अध्यक्ष , श्री राजेंद्र कुमार ‘अजेय’ मंत्री और श्री लक्ष्मीनारायण झरवाल संयुक्त मंत्री बनाए गए ।
  • राज्य मीणा सुधार समिति ने अप्रैल 1945 के अधिवेशन में जरायम पेशा आदि कानूनों के विरूद्ध मीणाओं का राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ने का निर्णय लिया तथा लक्ष्मीनारायण झरवाल को आंदोलन का संयोजक नियुक्त किया गया ।
  • 31 दिसंबर 1945 को नेहरू की अध्यक्षता में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के उदयपुर अधिवेशन में परिषद ने जरायम पेशा कानून रद्द करने की मांग की ।
  • 28 अक्टूबर 1946 को एक विशाल सम्मेलन बागावास में आयोजित कर चौकीदार मीणा ने स्वेच्छा से चौकीदारी के काम से इस्तीफा दिया तथा इस दिन को ‘मुक्ति दिवस’ के रुप में मनाया ।
  • मीणा ने मीणा सुधार समिति के आह्वान पर 6 जून 1947 को जयपुर में विशाल प्रदर्शन कर जरायम पेशा कानून की प्रतियां तथा पुतला जलाया ।
  • लंबे संघर्ष के बाद सन 1952 में जरायम पेशा कानून रद्द किया तथा मीणाओं ने अपने मूलभूत अधिकार प्राप्त किये ।

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