आज हम राठौड़ वंश (Rathore vansh ka itihaas) के इतिहास की बात करेंगे ।

Rathore vansh History in Hindi
महाराजा सरदारसिंह (1895-1911 ई.)
- सरदारसिंह महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय के पुत्र थे , जो 1895 में जोधपुर की गद्दी पर बैठे । इनका जन्म 11 फरवरी 1880 को हुआ था ।
- 1897 में महारानी विक्टोरिया के 60 वर्ष राज्य कर्ज चुकाने के उपलक्ष्य में लंदन में ‘हीरक जुबली‘ उत्सव मनाया गया । इसमें इनके चाचा महाराजा प्रतापसिंह शरीक हुए ।
- दक्षिण अफ्रीका के युद्ध के छिड़ जाने से अंग्रेज सरकार के नवें लांसर्स रिसाले के रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए मेजर जससिंह के नेतृत्व में जोधपुर का रिसाला मथुरा भेजा गया ।
- अगस्त , 1900 में चीन में युद्ध छिड़ जाने पर महाराजा प्रतापसिंह जी जोधपुर के सरदार रिसाला को साथ लेकर चीन गए । 2 अगस्त 1901 को प्रताप सिंह जी युद्ध से लौटकर जोधपुर आए । अंग्रेज सरकार ने प्रसन्न होकर युद्ध समाप्त होने पर जोधपुर को अपने झंडे पर ‘चाइना 1900‘ लिखने का सम्मान प्रदान किया और बाद में चीन से छिनी हुई चार तोपें भी भेंट की ।
- 12 जून 1905 को महाराजा सरदार सिंह द्वारा माजी जाडेजी राजकँवर के बनाए गए राजरणछोड़जी मंदिर की प्रतिष्ठा की गई । यह लाल पत्थर से बना हुआ है । इसमें रणछोड़जी की काले संगमरमर की प्रतिमा है ।
- 20 मार्च 1911 को 31 वर्ष की अवस्था में ही महाराजा सरदारसिंह का स्वर्गवास हो गया ।
- इनके समय सरदार समंद बनाया गया और हेमावास बाँध के कार्य का प्रारंभ हुआ । सरदार समंद बाँध गुहिया/सूकली नदी पर पाली जिले में सोजत सिटी के निकट स्थित है ।
- ‘टेलीफोन’ का प्रचार की जोधपुर में सर्वप्रथम महाराजा सरदार सिंह के समय हुआ ।
- इन्होंने 1899 में देवकुंड तट अपने पिता महाराज जसवंतसिंह द्वितीय का स्मारक जसवंत थड़ा (सफेद संगमरमर) बनवाया । यह स्थान जोधपुर राज परिवार के सदस्यों के दाह संस्कार के लिए सुरक्षित रखा गया है ।
- सरदारसिंह के समय जोधपुर ‘पोलो का घर’ कहलाता था । एक बार महाराजा ने पूना में ‘पोलो चैलेंज कप’ भी जीता था ।
महाराजा सुमेर सिंह ( 1911-1918 ई.)
- महाराजा सरदारसिंह की मृत्यु के बाद उनके जेष्ठ पुत्र महाराजा सुमेर सिंह 5 अप्रैल 1911 को जोधपुर के शासक बने । इनका जन्म 14 जनवरी 1898 को हुआ था ।
- अक्टूबर, 1912 में जोधपुर में ‘चीफ कोर्ट‘ की स्थापना हुई और इसका पहला चीफ जज ‘मिस्टर एडीसी बार ‘ को बनाया गया ।
- प्रथम विश्व युद्ध इन्हीं के समय में हुआ ।
- 4 अगस्त 1914 को जर्मनी व इंग्लैंड में युद्ध छिड़ गया । तब महाराजा सुमेर सिंह व वृद्ध महाराजा प्रतापसिंह जोधपुर के रिसाले को लेकर लंदन के लिए रवाना हुए । सम्राट जॉर्ज पंचम ने महाराजा सुमेर सिंह को 15 अक्टूबर 1914 को ब्रिटिश भारत की सेना का ‘ऑनरेरी लेफ्टिनेंट‘ नियुक्त किया ।
- इसी समय मिस्र के सुल्तान ने महाराज सुमेरसिंह जी को ‘ग्रांड कॉर्डन ऑफ दी ऑर्डर ऑफ दि नाइल‘ की उपाधि से सम्मानित किया ।
- महाराजा प्रतापसिंह जी की वीरता से प्रसन्न होकर फ्रांस के प्रेसिडेंट ने उन्हें ‘लीजियन डी और ऑनर ग्रांड ऑफीसर’ का और मिस्र के सुल्तान ने प्रथम श्रेणी का ”ग्रांड कॉर्डन ऑफ दी ऑर्डर ऑफ दि नाइल’ की उपाधि से सम्मानित किया ।
- भारत सरकार ने भी महाराजा प्रताप सिंह जी को ‘जीसीबी’ और ‘लेफ्टिनेंट जनरल‘ के पदों से सुशोभित किया था ।
- 1 अक्टूबर 1915 को जोधपुर में अजायबघर के साथ ही एक सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना की गई । अगले वर्ष इसका नाम बदलकर सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी कर दिया गया और अजायबघर का नाम ‘सरदार म्यूजियम’ रखा गया ।
- महाराजा सुमेर सिंह के समय ‘सुमेर कैमल कोर‘ की स्थापना की गई ।
- महाराजा सुमेर सिंह के समय जोधपुर-लाडनूँ की टेलीफोन लाइनें खुली ।
- 3 अक्टूबर 1918 को 21 वर्ष की आयु में ही इन्फ्लूएंजा रोग से महाराजा सुमेरसिंह जी का स्वर्गवास हो गया ।
महाराजा सर उम्मेद सिंह बहादुर ( 1918-1947 ई.)
- महाराजा सुमेर सिंह के निधन के बाद उनके छोटे भाई उम्मेदसिंह 14 अक्टूबर 1918 को जोधपुर की गद्दी पर बैठे । इनका जन्म 8 जुलाई 1903 को हुआ था ।
- इनके समय यूरोपीय महायुद्ध में दी गई सहायता के उपलक्ष्य में 1921 को जोधपुर दरबार की सलामी की तोपें 17 से 19 कर दी ।
- 8 फरवरी 1921 को जब दिल्ली में नरेंद्र मंडल का उद्घाटन किया गया, तो महाराज उम्मेद सिंह जी वहाँ गए ।
- 20 फरवरी 1921 को जोधपुर की पोलो टीम ने ‘प्रिंस ऑफ वेल्स कमेमोरेशन पोलो टूर्नामेंट‘ जीता ।
- 3 जनवरी 1927 को जोधपुर में ‘इम्पीरियल बैंक‘ की शाखा खोली गई ।
महाराजा उम्मेद भवन पैलेस :- महाराजा उम्मेद सिंह ने अकाल राहत कार्यों के तहत 1928-43 के मध्य उम्मेद भवन पैलेस का निर्माण कराया । उन्होंने 18 नवंबर 1929 को छीतर पहाड़ी पर बनाए गए अपने विशाल राज भवन ‘छितर पैलेस’ (उम्मेद भवन पैलेस) की नींव रखी । यह भवन ‘इंको-डेको स्टाइल’ में निर्मित किया गया है । इसके वास्तुविद् विद्याधर भट्टाचार्य व सर सैमुअल स्विंटन जैकब थे । इसके इंजीनियर हेनरी वॉगन लैंचेस्टर थे । इसका निर्माण 1943 में पूर्ण हुआ ।
विंडम अस्पताल :- महाराजा उम्मेद सिंह ने 9 सितंबर 1932 को जोधपुर में 300 बेड की क्षमता वाले ‘विंडम अस्पताल’ की स्थापना की । स्वतंत्रता के बाद स्व. सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसका नाम ‘महात्मा गांधी अस्पताल’ रखा । वर्तमान में यह 624 बैंड की क्षमता का अस्पताल है ।
- 10 मई 1933 को मारवाड़ की रियासत का नाम जोधपुर स्टेट के बदले ‘जोधपुर गवर्नमेंट’ कर दिया गया और काउंसिल के मेंबर ‘काउंसिल के मिनिस्टर‘ कहलाने लगे ।
- मारवाड़ के तत्कालीन चीफ मिनिस्टर सर डोनाल्ड फील्ड को ‘डीफैक्टो रूलर ऑफ जोधपुर स्टेट‘ कहा जाता था ।
- महाराजा उम्मेद सिंह ने आर आर सुधालकर समिति की रिपोर्ट के अनुसार 24 जुलाई 1945 को जोधपुर राज्य में संवैधानिक सुधारों की घोषणा की । फिर जोधपुर राज्य में विधान परिषद की स्थापना की गई ।
- 28 मार्च 1947 को महाराजा ने ‘द जोधपुर लेजिस्लेटिव असेंबली रूल्स’ का अनुमोदन किया ।
- महाराजा उम्मेद सिंह जी का 9 जून 1947 को माउंट आबू में निधन हो गया ।
महाराजा हनवंत सिंह (1948-49)
- इनका जन्म 16 जून 1923 को हुआ । महाराजा उम्मेद सिंह की मृत्यु के बाद 21 जून 1947 को जोधपुर के शासक बने ।
- इनके समय ही जोधपुर राज्य का राजस्थान में विलय किया गया ।
- महाराजा हनवंत सिंह ने पाकिस्तान के गर्वनर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना और नरेंद्र मंडल के भोपाल के नवाब श्री हमीदुल्लाह खाँ से मिलकर अपनी रियासत को एक स्वतंत्र इकाई रखना चाहा था ।
- इनका 26 जनवरी 1952 में एक प्लेन दुर्घटना में निधन हो गया ।
- इन्होंने महारानी सेंड्रा देवी राठौड़ व मुस्लिम एक्ट्रेस जुबैदा से शादी की ।
- जुबैदा का नाम बाद में धर्म परिवर्तन कर विद्या रानी राठौड़ कर दिया गया था ।
महाराज गजसिंह द्वितीय ( 1952-2002)
- इन्हें ‘मारवाड़ का भागीरथ‘ कहा जाता है ।
- महाराज गजसिंह ने 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कला एवं संस्कृति निधि (इंटेक) की स्थापना की ।
- वे मारवाड़ के पहले शासक थे, जिन्होंने अपनी प्रजा को अकाल से मुक्ति दिलवाने हेतु 5 सितंबर 1986 से 14 सितंबर 1986 तक बाबा रामदेव जी के दर्शनार्थ रामदेवरा तक पैदल यात्रा की ।
- इन्होंने पानी बचाओ आंदोलन में भाग लिया ।
महत्वपूर्ण बिंदु :-
➡ दस्तरी का महकमा :- मारवाड़ राज्य के इस विभाग में राज्य संबंधी खास-खास घटनाओं का विवरण लिखा जाता है । मारवाड़ में सर्वप्रथम 1926 में को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी का कानून बनाकर ‘जोधपुर रेल्वे को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी’ की स्थापना की गई ।
➡ वॉल्टर राजपूत हितकारिणी सभा :- इस सभा की स्थापना राजपूताना के तत्कालीन एजीजी कर्नल वॉल्टर की अध्यक्षता में अजमेर में की गई थी और इसका उद्देश्य राजपूतों और चारणों के यहां की शादी और गमी में होने वाले खर्चों में कमी करना था ।
➡ इजलास खास :- पहले अपीलें और अर्जियां महाराजा के प्राइवेट सेक्रेटरी के पास पेश की जाती थी , परंतु 1933 से ‘इजलास-ए- खास’ नाम से एक महकमा स्थापित किया गया ।
➡ रेख :- यह जागीरदारों पर लगने वाला राजकीय कर है । (सवाई राजा शूरसिंह के समय )
➡ मतालबा :- महाराजा विजयसिंह ने 1755 में जागीरदारों पर, शाही जजिया और मारवाड़ से बाहर के युद्ध में भाग लेने की सेवा के बदले में 1000 की आमदनी ₹300 के हिसाब से ‘मतालबा’ नामक कर लगाया ।
➡ चाकरी :- जागीरदारों पर लगने वाला कर ।
➡ लाख पसाव :- उपहार में दिया जाने वाला पुरस्कार
➡ राठौड़ राजस्थान में ‘रणबंका राठौड़‘ के नाम से प्रसिद्ध है ।
➡ ‘पुस्तक प्रकाश ‘ संग्रहालय में सबसे पुरानी पुस्तक 1415 में लिखी हुई है ।
जोधपुर राज्य (Jodhpur History in Hindi) के राठौड़ वंश का इतिहास (Rathore vansh ka itihaas) समाप्त हुआ । मारवाड़ के राठौड़ वंश से संबंधित किसी भी टॉपिक पर प्रॉब्लम होने पर कमेंट में जरूर पूछें …सधन्यवाद ।
अगली पोस्ट में बीकानेर के राठौड़ शासक ( Bikaner ke Rathore vansh ka itihaas) के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।
इन्हें भी देखें:-
- जोधपुर राज्य के राठौड़ वंश का इतिहास
- राव मालदेव राठौड़ का इतिहास
- राव चंद्रसेन राठौड़ का इतिहास
- मारवाड़ का इतिहास
- महाराजा जसवंतसिंह प्रथम का इतिहास
- महाराजा अजीतसिंह का इतिहास
- महाराजा अभयसिंह , रामसिंह, बख्तसिंह, विजयसिंह और भीमसिंह
- महाराजा मानसिंह राठौड़ का इतिहास
- महाराजा तख्तसिंह राठौड़ का इतिहास
- महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय का इतिहास