Fundamental Rights in Hindi

Fundamental Rights in Hindi । मूल अधिकार या मौलिक अधिकार

मूल अधिकार (Fundamental Rights in Hindi)– वे अधिकार है तो व्यक्ति के लिए मौलिक (सर्वागीण विकास के लिए आवश्यक ) होने के कारण संविधान द्वारा प्रदान किए जाते हैं तथा संविधान द्वारा इनकी सुरक्षा की गारंटी दी जाती है ।

मानवाधिकार एवं मूल अधिकार 

मानवाधिकार वो अधिकार है जो एक मनुष्य को मनुष्य होने के नाते मिलनी चाहिए । एक देश अपनी उपलब्ध संसाधनों को ध्यान में रखते हुए इनमें से कुछ बुनियादी एवं अत्यावश्यक अधिकारों को संविधान में स्थान देता है तथा उनकी सुरक्षा की गारंटी देता है । तब ये अधिकार मूल अधिकार कहलाते हैं ।

भारत के संविधान के भाग- 3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है । संविधान के भाग- 3 को “भारत का मैग्नाकार्टा” की संज्ञा दी गई है ।

मैग्नाकार्टा – मैग्नाकार्टा अधिकारों का वह दस्तावेज था, जिसे इंग्लैंड के राजा जॉन द्वारा 1215 में सामंतों के दवाब में जारी किया गया था । यह नागरिकों के अधिकारों से संबंधित प्रथम लिखित आलेख था ।

मूलत: संविधान में 7 मूल अधिकार थे परंतु 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम (1978) द्वारा संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया । अब यह केवल कानूनी अधिकार है (अनुच्छेद 300क) । वर्तमान में निम्नलिखित 6 मूल अधिकार हैं –

  1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19- 22)
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23- 24)
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25- 28)
  5. शिक्षा एवं संस्कृति संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29- 30)
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

अनुच्छेद 12 में “राज्य” को परिभाषित किया गया है ।

अनुच्छेद 13 के अनुसार ऐसे कानून अवैध होंगे जो मूल अधिकारों को सीमित या समाप्त करते हो । लेकिन कानून का वह अंश ही अवैध होगा जो मूल अधिकारों से असंगत है संपूर्ण कानून नहीं । इसे आंशिक निरस्तीकरण सिद्धांत कहा जाता है ।

यद्यपि संविधान में संशोधन कर संसद मूल अधिकारों को सीमित कर सकती है । साधारण कानून द्वारा सीमित किए जाने पर यह कानून अवैध होगा । जैसे- 1970 में राजाओं के प्रिवीपर्स समाप्त करने के संबंध में संसद द्वारा पारित कानून को उच्चतम न्यायालय ने अवैध घोषित किया । अत: संसद में संविधान में संशोधन (26 वां, 1971) करके प्रिवीपर्स को समाप्त किया ।

1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)

अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता और विधि का समान सरंक्षण ) : विधि के समक्ष समानता ब्रिटिश संविधान की देन है, जबकि विधि का समान संरक्षण अमेरिका के संविधान से लिया गया है ।

अपवाद – अनुच्छेद 361 के अनुसार राष्ट्रपति और राज्यपाल अपने कार्यकाल में किए गए कार्य या निर्णय के लिए किसी भी न्यायालय में जवाबदेह नहीं होंगे । उन पर कार्यकाल के दौरान गिरफ्तारी या कारावास के लिए किसी न्यायालय में कोई प्रक्रिया प्रारम्भ नहीं की जा सकती ।

कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी बनाने के लिए कानून के समक्ष समानता को सीमित किया जा सकता है (अनुच्छेद 31ग) । इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि जहां अनुच्छेद 31ग आता है वहां अनुच्छेद 14 चला जाता है ।

अनुच्छेद 15 – राज्य केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के बीच कोई भेदभाव नहीं करेगा । सब नागरिकों को दुकानों, सार्वजनिक स्थानों, भोजनालयों,होटलों, सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों, कुओं, तालाबों, स्नानघरों, सड़कों इत्यादि का प्रयोग करने का समान अधिकार होगा ।

अनुच्छेद 16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता ) – इस अनुच्छेद में प्रावधान है कि राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन के संबंध में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर होंगे ।

अपवाद – अनुच्छेद 16 (4) सरकारी नौकरी में कमजोर वर्ग को आरक्षण ।

अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत ) – अस्पृश्यता से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना दण्डीय अपराध होगा । अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए सरकार ने “अस्पृश्यता निवारण अधिनियम 1955 “, “नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976” , अनुसूचित जाति, जनजाति निरोधक कानून 1989 पारित किया है ।

अनुच्छेद 18 (उपाधियों का अंत ) – सेना तथा विद्या संबंधी उपाधियों के अतिरिक्त राज्य अन्य कोई उपाधियां प्रदान नहीं करेगा । इसके साथ ही भारत का कोई नागरिक राष्ट्रपति की आज्ञा के बिना विदेशी राज्य की कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा ।

  • मोरारजी देसाई सरकार (1977) ने भारत रत्न, पद्म विभूषण जैसे सम्मानों को यह कहकर बंद कर दिया है कि यह अनुच्छेद 18 का उल्लंघन करते हैं । लेकिन इंदिरा गांधी सरकार (1980) ने इनको पुन: बहा कर दिया ।
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22 )

अनुच्छेद 19 में 6 स्वतंत्रता का उल्लेख किया गया है –

(१) विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 (1)क) – इसमें प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है ।

(२) शांतिपूर्ण एवं निरायुद्ध सम्मेलन की स्वतंत्रता(अनु. 19 (1)ख)

(३) संघ, संगठन एवं सहकारी समिति बनाने की स्वतंत्रता (अनु.19 (1)ग)

(४) भारत में कहीं भी भ्रमण करने की स्वतंत्रता (अनु. 19 (1)घ)

(५) भारत में कहीं भी निवास करने की स्वतंत्रता (अनु. 19 (1)ड़)

(६) कोई भी व्यवसाय करने की स्वतंत्रता (अनु. 19 (1)छ)

अनुच्छेद 20 (अपराध के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण) – यह अनुच्छेद किसी भी अभियुक्त या दोषी करार व्यक्ति चाहे वह भारतीय नागरिक हो या विदेशी या कंपनी व परिषद् का कानूनी व्यक्ति हो, उसके विरुद्ध मनमाने और अतिरिक्त दण्ड से संरक्षण प्रदान करता है ।

एक अपराध के लिए एक से अधिक बार सजा नहीं दी जा सकती । किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता ।

  • हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार अभियुक्त का नार्को टेस्ट अभियिक्त की सहमति के बिना नहीं किया जा सकता । क्योंकि बिना सहमति के किया गया टेस्ट अनुच्छेद 20 (स) का उल्लंघन है ।

अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) – किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से “विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया ” के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं । व्यक्ति स्वयं भी अपने प्राणों का अंत नहीं कर सकता,इसलिए आत्महत्या कानूनी अपराध है ।

  • मेनका गांधी वाद (1978) के बाद यह अधिकार और व्यापक हो गया है,जीवन जीने के अधिकार में निम्नलिखित को भी शामिल किया जाता है –

(१) मानवीय प्रतिष्ठा के साथ जीने का अधिकार ।
(२) प्रदूषण रहित एवं वायु में जीने का अधिकार एवं हानिकारक उद्योगों के विरुद्ध सुरक्षा ।
(३) निजता का अधिकार ।
(४) त्वरित सुनवाई का अधिकार ।
(५) विदेश यात्रा करने का अधिकार ।

नोट:- अनुच्छेद 20 एवं 21 को आपातकाल में भी स्थगित नहीं किया जा सकता ।

अनुच्छेद 21क(शिक्षा का अधिकार ) – 86 वां संविधान संशोधन (2002) द्वारा यह अधिकार संविधान में जोड़ा गया। यह अधिकार 6 से 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है ।

  • निजता का अधिकार – तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की 9 सदस्यीय खंडपीठ ने के. पुत्तास्वामी बनाम भारत संघ बाद में सर्व समिति से 24 अगस्त, 2017 को ऐतिहासिक निर्णय देते हुए”निजता के अधिकार” को संविधान के अनुच्छेद 21 के जीवन व स्वतंत्रता के अधिकार मूल अधिकार का अभिन्न हिस्सा माना जिसे संविधान के भाग-3 द्वारा गारंटी प्रदान की गई है ।
  • इच्छा मृत्यु – उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने 9 मार्च, 2018 को दिए गए महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि वसीयत (लिविंग विल : यह एक लिखित दस्तावेज होता है ) के आधार पर निष्क्रिय इच्छा मृत्यु की मंजूरी दी जा सकती है । सीजीआई जस्टिस दीपक मिश्रा की 5 जजों की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति को अगर गरिमा के साथ जीने का हक है तो उसे सम्मान से मरने का भी हक है ।

अनुच्छेद 22 ( कुछ दशाओं में गिरफ्तारी व निरोध से संरक्षण) – इसमें निम्न बिंदुओं पर ध्यान दिया जाता है –
(१) बंदी बनाए गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर न्यायाधीश के सामने पेश किया जाए ।
(२) बंदी बनाए गए व्यक्ति को वकील से परामर्श करने का अधिकार है ।
(३) बंदी बनाए जाने के कारणों को यथाशीघ्र बताया जाए ।

यह अधिकार भारत में निवास करने वाले विदेशी, शत्रु या निवारक निरोध अधिनियम के अंतर्गत गिरफ्तार लोगों पर लागू नहीं होता है ।

  • निवारक निरोध कानून, जिसे संसद द्वारा बनाया गया है –
    (१) निवारक निरोध अधिनियम (1950),जो 1969 में समाप्त हो गया ।
    (२) आंतरिक सुरक्षा अधिनियम, MISA (1971), जिसे 1978 में निरस्त कर दिया गया ।
    (३) राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (रा.सु.का) 1980
    (४) आंतकवादी और विध्वंसक क्रियाकलाप अधिनियम,TADA (1985 ) ,यह 1995 से समाप्त हो गया ।
    (५) आंतकवाद निवारण अधिनियम (POTA),2002, इसे 2004 में निरस्त कर दिया गया ।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23- 24 )

अनुच्छेद 23 (बेगार प्रथा व मानव दुर्व्यापार ) – इसमें समाज के कमजोर वर्गों के शोषण के रक्षा का प्रावधान है तथा मानव की खरीद-फरोख्त एवं उसके बेगार लेने को गैर कानूनी एवं दण्डनीय घोषित किया गया है ।

अनुच्छेद 24 ( बाल श्रम का निषेध ) – 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखानों, खानो या अन्य खतरनाक स्थलों पर कार्य नहीं कराया जा सकता ।

4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25- 28)

अनुच्छेद 25 ( अंतः करण से किसी भी धर्म को मानने एवं प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता ) – कुछ प्रबंधों के अधीन रहते हुए सभी व्यक्तियों को अतः करण की, किसी भी धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता है ।

अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों के आयोजन की स्वतंत्रता ) – प्रत्येक धार्मिक समुदाय या उसके किसी भाग को धार्मिक संस्थाओं की स्थापना एवं पोषण का अधिकार होगा।

अनुच्छेद 27 ( धार्मिक कार्यों में खर्च की गई राशि पर कर(Tax) में छूट ) – किसी विशेष धर्म या संप्रदाय के पोषण में प्रयोग किए जाने वाले करों को संदाय करने हेतु किसी भी व्यक्ति को बाध्य नहीं किया जा सकेगा ।

अनुच्छेद 28 ( सार्वजनिक शिक्षण संस्थान में धार्मिक शिक्षा के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता )

5. शिक्षा एवं संस्कृति संबंधी अधिकार ( अनुच्छेद 29-30 )

अनुच्छेद 29 ( नागरिकों को अपनी भाषा लिपि एवं संस्कृति बनाए रखने का अधिकार है )

अनुच्छेद 30 ( अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थानों की स्थापना व संचालन का अधिकार ।)

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32 )

संविधान के अनुच्छेद 32 को डॉ. अंबेडकर ने संविधान का ह्रदय व आत्मा कहा है । किसी भी नागरिक के मूल अधिकारों का किसी भी प्रकार यदि हनन होता है तो उसे न्यायालय की शरण लेने का अधिकार है । न्यायालय मूल अधिकारों की रक्षा के लिए निम्नलिखित लेख ( Writ) जारी कर सकता है – [उच्चतम न्यायालय (अनुच्छेद 32) तथा उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226) के तहत ]

(1) बंदी प्रत्यक्षीकरण – बंदी बनाए गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर न्यायालय में पेश नहीं किए जाने पर संबंधित पुलिस अधिकारी को यह लेख जारी किया जाता है ।

(2) परमादेश – इसका शाब्दिक अर्थ है “हम आदेश देते हैं ” । यदि कोई सार्वजनिक संस्था या पदाधिकारी अपने दायित्व का निर्वहन नहीं करे तो उसे परमादेश लेख जारी किया जाता है ।

(3) प्रतिषेध – इसका शाब्दिक अर्थ है रोकना । यह आदेश अधीनस्थ न्यायालयों को अपने न्याय क्षेत्र से बाहर कार्यों को रोकने के लिए जारी किया जाता है ।

(4) उत्प्रेषण – यह लेख उच्चतम न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को क्षेत्र अधिकार से बाहर के मामलों को रुकवा कर अपने पास मंगवाने के लिए जारी किया जाता है ।

(5) अधिकार पृच्छा – अनाधिकृत व्यक्ति को पद से हटाने के लिए यह लेख जारी किया जाता है ।

अनुच्छेद 33 – संसद को यह अधिकार देता है कि वह सशस्त्र बलों, अर्धसैनिक बलों, पुलिस बलों, खुफिया एजेंसियों एवं अन्य के मूल अधिकारों पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सके ।

अनुच्छेद 34 – मूल अधिकारों पर तब प्रतिबंध लगाता है जब भारत में कहीं भी मार्शल लॉ लागू हो । हालांकि “मार्शल लॉ” की संविधान में व्याख्या नहीं की गई है पर इसका शाब्दिक अर्थ है – सैनिक शासन । यह ऐसी स्थिति का परिचायक है, जहां सेना द्वारा सामान्य प्रशासन को अपने नियम कानूनों के तहत संचालित किया जाता है ।

अनुच्छेद 35A – संविधान का अनुच्छेद 35A, 1954 के एक राष्ट्रपति आदेश के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया था, न कि अनुच्छेद 368 के अधीन संविधान संशोधन की औपचारिक प्रक्रिया से । यह आदेश अनुच्छेद 370 के तहत जारी किया गया जो जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है ।

अनुच्छेद 35A जम्मू कश्मीर की विधानसभा को यह विशेषाधिकार देता है कि वह तय कर सके कि वहां के स्थायी निवासी कौन होंगे और उनके अधिकार तथा विशेषाधिकार क्या-क्या होंगे । जिसे नरेंद्र मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को निरस्त कर दिया गया ।

नोट – अनुच्छेद 15, 16, 19,29 एवं 30 भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकार है तथा शेष अधिकार विदेशी नागरिकों को भी प्राप्त है ।

इन्हें भी देखें- 

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